Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -19)
मोर के चंदन मौर बन्यौ
दिन दूलह है अली नंद को नंदन।
श्री वृषभानुसुता दुलही दिन
जोरि बनी बिधना सुखकंदन।
आवै कह्यौ न कछू रसखानि हो
दोऊ बंधे छबि प्रेम के फंदन।
जाहि बिलोकें सबै सुख पावत
ये ब्रजजीवन है दुखदंदन।।
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